प्रदेश में शिक्षक पात्रता परीक्षा यानी टीईटी की चाल छह साल में भी सुधर
नहीं सकी है। इन वर्षो में महज पांच बार ही जैसे-तैसे परीक्षा कराई जा सकी
है। वर्ष में एक बार ही परीक्षा कराने अफसरों का पसीना छूट रहा है, वहीं
अभ्यर्थियों का रुझान इस ओर कम हुआ है। करीब सवा पांच लाख युवाओं का
प्रमाणपत्र नवंबर 2016 में खत्म हो चुका है। परीक्षा योग्य बेरोजगार युवाओं
की संख्या ही बढ़ा रही है।
राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद यानी एनसीटीई
के निर्देश पर शिक्षक पात्रता परीक्षा शुरू हुई थी। उप्र में यह 2011 से
लागू हुई। इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कक्षा आठ तक में पढ़ाने वाले
शिक्षकों को यह परीक्षा उत्तीर्ण करना जरूरी है। पहले साल टीईटी कराने का
दायित्व यूपी बोर्ड को इस उद्देश्य से सौंपा गया कि उसे बड़ी परीक्षा कराने
का अनुभव है, लेकिन इसमें व्यापक धांधली हुई। हालांकि पहले वर्ष प्राथमिक
एवं उच्च प्राथमिक के लिए सर्वाधिक युवाओं ने दावेदारी की, जो छह साल में
टूट नहीं सकी है। शासन ने परीक्षा में धांधली के बाद इसे परीक्षा नियामक
प्राधिकारी सचिव को सौंप दिया। टीईटी लागू होने के दूसरे वर्ष 2012 में
कराई ही नहीं जा सकी। 2013 में हुई टीईटी में दावेदारों की संख्या पहले से
करीब चार लाख घट गई। 2014 में से युवाओं के बीच विश्वास बहाली शुरू हुई।
2015 का इम्तिहान उस वर्ष नहीं हो सका, जबकि परीक्षा नियामक प्राधिकारी
कार्यालय से कई बार प्रस्ताव भेजा गया। आखिरकार वह फरवरी 2016 में हो पाई।
2016 की परीक्षा पिछले माह पूरी हुई है। 1असल में टीईटी उत्तीर्ण करने वाले
अधिकांश युवाओं को अब तक शिक्षक बनने का मौका नहीं मिला है। बीते नवंबर
2016 में एकमुश्त सवा पांच लाख से अधिक युवाओं का प्रमाणपत्र बेकार हो गया
है, क्योंकि उसकी पांच वर्ष की अवधि पूरी हो गई थी। आने वाले वर्षो में
इससे अधिक संख्या में युवाओं का प्रमाणपत्र बेकार हो जाने की आशंका है,
क्योंकि उच्च प्राथमिक स्कूलों के लिए अधिक संख्या में युवा आवेदन करते हैं
और वहां के पद प्रमोशन से भरे जाने हैं। साथ ही प्राथमिक स्कूलों की टीईटी
करने वाले सभी युवाओं को परिषदीय स्कूलों में मौका मिलेगा यह संभव नहीं
लगता। परीक्षा नियामक प्राधिकारी कार्यालय पहले 2016 के रिजल्ट को तैयार
कराने में जुटा है और इसके बाद 2017 की टीईटी की तैयारियां भी शुरू होंगी।
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