डॉ.संजीव लखनऊ. जनगणना करनी है, उनकी ड्यूटी लगा लो। मतदाता
सूची बनवानी है, उनकी ड्यूटी लगा लो। बच्चों के पेट में कीड़े की दवा
खिलानी है तो भी उनकी ड्यूटी लगवा लो। पर बढ़ा वेतन देना है तो सबसे बाद में दो। उत्तर प्रदेश के
शिक्षकों के साथ तो ऐसा ही हो रहा है। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू
होने के दो माह बाद भी प्रदेश के सात लाख शिक्षकों को बढ़ा हुआ वेतन नहीं
मिला है। अन्य विभागों के कर्मचारी जहां बढ़े वेतन का लाभ उठा रहे हैं,
शिक्षक पुराने वेतन के साथ ही जीवन-यापन को विवश हैं।
केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए सातवें वेतन आयोग की
संस्तुतियों को पिछले साल लागू कर दिया था। इसके बाद सितंबर 2016 में
प्रदेश सरकार ने भी इन्हें स्वीकार करने के साथ सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी
गोपबंधु पटनायक की अध्यक्षता में समीक्षा समिति गठित की थी।
इस समिति की सिफारिशों के अनुरूप प्रदेश के तीस लाख से अधिक
कर्मचारियों, शिक्षकों व पेंशनरों को बढ़ा वेतन मिलना था। राज्य सरकार ने
समिति की सिफारिशें स्वीकार कर जनवरी से इस पर अमल का फैसला किया था।
इसके बाद 23 लाख के आसपास कर्मचारी व पेंशनर तो सातवें वेतन
आयोग की सिफारिशों के अनुरूप बढ़ा हुआ वेतन व पेंशन पा रहे हैं, किन्तु
शिक्षक उससे वंचित हैं। सरकारी प्राइमरी व जूनियर हाई स्कूलों के छह लाख से
अधिक शिक्षकों के साथ सहायता प्राप्त इंटर कालेजों के लगभग एक लाख शिक्षक
भी बढ़े वेतन का लाभ नहीं पा सके हैं।
इस बाबत सरकारी आदेश जारी होने के दो माह बाद भी बढ़ा हुआ
वेतन न मिलने से शिक्षकों में निराशा है। उनका कहना है कि प्राइमरी के
शिक्षकों को साल भर पढ़ाई से ज्यादा बीएलओ, जनगणना सहित तमाम तरह की ड्यूटी
में आगे रखा जाता है। इसके विपरीत वेतन बढ़ने की बात आती है तो वे पीछे रह
जाते हैं। यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है।
नहीं बना सॉफ्टवेयर :
शिक्षकों को जनवरी के वेतन से बढ़ा वेतन मिलना था। इस कारण फरवरी का वेतन भी समय से नहीं निकाला गया। जब अधिकांश जिलों में 15 फरवरी तक वेतन नहीं मिला तो शिक्षक परेशान हुए। इस पर कहा गया कि नए वेतनमान की मैट्रिक्स समझने व उस पर अमल में दिक्कत से विलंब हो रहा है।
शिक्षकों को जनवरी के वेतन से बढ़ा वेतन मिलना था। इस कारण फरवरी का वेतन भी समय से नहीं निकाला गया। जब अधिकांश जिलों में 15 फरवरी तक वेतन नहीं मिला तो शिक्षक परेशान हुए। इस पर कहा गया कि नए वेतनमान की मैट्रिक्स समझने व उस पर अमल में दिक्कत से विलंब हो रहा है।
बमुश्किल 25 फरवरी तक शिक्षकों के खाते में वेतन पहुंचा, वह
भी पुराने वेतनमान के आधार पर। अब कहा जा रहा है कि फरवरी का वेतन भी
पुराने वेतनमान के आधार पर मिलेगा।
इसके लिए एनआइसी से सॉफ्टवेयर बनकर न मिलने का तर्क दिया जा
रहा है। बताया गया कि एनआइसी ने निजी क्षेत्र की किसी कंपनी को सॉफ्टवेयर
बनाने का जिम्मा दिया है और उस कंपनी ने अभी तक सॉफ्टवेयर बनाकर दिया ही
नहीं, इससे दिक्कत हो रही है। अफसरों की इस उदासीनता का शिकार शिक्षक हो
रहे हैं।
उधर शासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों
को भी नया वेतनमान नहीं मिलने के पीछे सॉफ्टवेयर उपलब्ध न होने का तर्क
दिया जा रहा है। इसके विपरीत राजकीय इंटर कालेजों के शिक्षकों को बढ़ा हुआ
वेतन मिल चुका है।
विभाग की जिम्मेदारी :
शिक्षकों को हो रही इस दिक्कत के पीछे पूरे तरह विभागीय मशीनरी जिम्मेदार है। प्रदेश शासन की ओर से सभी शिक्षकों के लिए बजट भी जारी कर दिया गया है, इसके बावजूद उन्हें बढ़ा वेतन नहीं मिल पा रहा है।
शिक्षकों को हो रही इस दिक्कत के पीछे पूरे तरह विभागीय मशीनरी जिम्मेदार है। प्रदेश शासन की ओर से सभी शिक्षकों के लिए बजट भी जारी कर दिया गया है, इसके बावजूद उन्हें बढ़ा वेतन नहीं मिल पा रहा है।
इस संबंध में अपर मुख्य सचिव (वित्त) डॉ. अनूप चंद्र पाण्डेय
का कहना है कि शासन स्तर पर कोई ढिलाई नहीं हुई है। केंद्र सरकार द्वारा
सिफारिशें स्वीकर करते ही प्रदेश सरकार ने नियमानुसार समीक्षा समिति गठित
की और उनसे समय पर रिपोर्ट लेकर सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू भी कर
दीं।
एक जनवरी 2017 से सभी शिक्षकों को इनका लाभ मिलना चाहिए था।
वित्त विभाग ने इसके लिए बजट भी जारी कर दिया है। इसके बावजूद यदि शिक्षकों
को सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप बढ़े वेतनमान के हिसाब से
वेतन नहीं मिल रहा है, तो यह संबंधित विभाग की जिम्मेदारी है।
जिस तरह अन्य विभागों ने अपने कर्मचारियों को सातवें वेतन
आयोग का लाभ दिया है, उसी तरह शिक्षा विभाग को भी इस पर अमल करना चाहिए था।
कोषागारों से सीधे पेंशनरों को पेंशन भेजी जाती है और वहां सॉफ्टवेयर
अपडेट कर सभी पेंशनरों को दो माह की बढ़ी पेंशन मिल चुकी है।
पहले करना था इंतजाम :-
प्राथमिक शिक्षकों के साथ हो रही इस बेइंसाफी से उनमें आक्रोश बढ़ता जा रहा है। प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष दिनेश चंद्र शर्मा का कहना है कि सरकार की ढिलाई से यह स्थिति आई है।
प्राथमिक शिक्षकों के साथ हो रही इस बेइंसाफी से उनमें आक्रोश बढ़ता जा रहा है। प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष दिनेश चंद्र शर्मा का कहना है कि सरकार की ढिलाई से यह स्थिति आई है।
सरकार को पहले से इंतजाम करने चाहिए थे। जिस तरह अन्य
विभागों में सॉफ्टवेयर तैयार हो गए, वैसे ही प्राइमरी व जूनियर के शिक्षकों
के लिए भी समय पर इसे लागू हो जाना चाहिए था।
उन्होंने दावा किया कि अब एनआइसी के अफसरों ने जल्द ही
सॉफ्टवेयर मिलने की बात कही है, जिससे अगले माह हर हाल में शिक्षकों को
बढ़ा वेतन मिल सकेगा।
शिक्षक विधायक राज बहादुर सिंह चंदेल का कहना है कि जिन
अशासकीय माध्यमिक विद्यालयों में बढ़ी ग्रांट से संबंधित दिक्कतें हैं,
वहीं शिक्षकों को बढ़ा वेतन नहीं मिल पाया है। वे प्रमुख सचिव से इस मसले
पर बात करेंगे, ताकि समय रहते शिक्षकों को बढ़ा वेतन मिल सके।
ब्याज नहीं,वसूली का डर :-
शिक्षकों से कहा जा रहा है कि उन्हें एरियर मिलेगा वे चिंता न
करें। दरअसल सरकार ने वेतन आयोग की सिफारिशें एक जनवरी 2016 से लागू की
हैं। जनवरी 2017 के वेतन से इसका भुगतान होना था और शेष 12 महीने के बढ़े
वेतन के हिस्से का एरियर मिलना था।
अब कहा जा रहा है कि मार्च का वेतन अप्रैल में उन्हें बढ़कर
मिलेगा। शेष दो महीने का एरियर उन्हें मिल जाएगा। इस तरह कुल 14 महीने का
एरियर मिलने का दावा किया जा रहा है। शिक्षकों का कहना है कि पहले भी एरियर
मिलने में विभागीय स्तर पर बेहद दिक्कतें होती रही हैं। उन्हें डर है कि
एरियर के नाम पर उनसे वसूली की जा सकती है।
शिक्षक नेता राकेश बाबू पाण्डेय का कहना है कि विभागीय गलती
से शिक्षकों को जिस अवधि में बढ़ा वेतन नहीं मिला है, उस अवधि के बकाए पर
उन्हें ब्याज मिलना चाहिए। ऐसा न होने पर प्राथमिक शिक्षक संघ आंदोलन का
रुख अख्तियार करेगा।
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