बारहवीं की बोर्ड परीक्षा न कराने के पक्ष में खड़े राज्यों को भले ही इस फैसले से कुछ फायदा नजर आ रहा हो, लेकिन भविष्य में इस फैसले से बच्चों के सामने कई तरह की चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं। खासकर केंद्रीय मदद से संचालित होने वाले प्रतिष्ठित उच्च शिक्षण संस्थानों और केंद्रीय विश्वविद्यालयों के प्रवेश में दिक्कत खड़ी हो सकती है। जहां उन्हें परीक्षा देकर आए छात्रों के मुकाबले कमतर आंका जा सकता है। ऐसे ही समस्या विदेशी संस्थानों के दाखिले में पैदा हो सकती है।
राज्यों
के इस फैसले से इन छात्रों पर सदैव बगैर परीक्षा दिए पास होने का ठप्पा
लगेगा। जो भविष्य में आगे भी चुनौती खड़ी करता रहेगा। यही वजह है कि
छात्रों के व्यापक हित को देखते हुए सीबीएसई (केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा
बोर्ड) जैसा केंद्रीय बोर्ड परीक्षा कराने के पक्ष में मजबूती से खड़ा है।
पिछले साल भी परीक्षाओं को लेकर ऐसी ही चुनौती खड़ी हुई थी, तब मामला
सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा था। उस समय भी केंद्र सरकार ने कहा था कि
छात्रों की सुरक्षा उनकी पहली प्राथमिकता है, लेकिन परीक्षा भी जरूरी है,
क्योंकि इससे बच्चों का पूरा भविष्य जुड़ा है। बाद में स्थिति सामान्य होने
के बाद सभी सुरक्षा मापदंडों को ध्यान में रखते हुए परीक्षा कराई गई थी।
इस बार भी केंद्र का रुख ऐसा ही है। मंत्रलय से जुड़े सूत्रों के मुताबिक
फिलहाल सभी राज्यों को सुरक्षा प्रबंधन के साथ परीक्षा कराने की सलाह दी
जाएगी। अब उस पर अमल करना या न करना उनके ऊपर है। फिलहाल किसी पर कुछ थोपा
नहीं जाएगा। यह जरूर है कि यदि कुछ राज्यों में बच्चे बगैर परीक्षा दिए ही
पास होकर आते है, तो प्रवेश परीक्षाओं आदि में सभी के बीच एकरूपता लाने में
दिक्कत होगी। खासकर ऐसे विश्वविद्यालय जिनमें प्रवेश में बारहवीं के अंकों
को भी आधार बनाया जाता है।
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