सिद्धार्थनगर: बेसिक शिक्षा विभाग में स्कूलों तक किताबें पहुंचाना
विभाग के लिए टेढ़ी खीर है। जिस ठीकेदार को यह जिम्मेदारी दी गई है, उसका
कुछ पता नहीं। ऐसे में शिक्षक और शिक्षा मित्र बच्चों की लिस्ट लेकर खुद ही
बीआरसी से किताबें उठा रहे हैं। संबंधित खंड शिक्षा अधिकारी भी दबाव बनाएं
हैं, बिना ढुलाई भत्ता खर्च किए किताबें स्कूलों तक पहुंच जाएं। जिले के
चौदह ब्लाक क्षेत्रों में 1924 प्राथमिक विद्यालय हैं। इनमें से पचास फीसद
से अधिक विद्यालयों में अभी तक किताबें नहीं पहुंच सकी हैं। जहां पहुंची
हैं, वहां भी पूरी किताबें नहीं हैं। शिक्षक अपना किराया खर्च करके उसे
स्कूल तक ले जाकर बच्चों को बांटते हैं। शिक्षकों का यह भी कहना है कि
100-100 बच्चों की किताबों के बंडल ले जाने में उनको पूरे रास्ते परेशानी
का सामना करना पड़ता है।
बीते
13 जुलाई को राज्य परियोजना निदेशक समग्र शिक्षा लखनऊ, विजय किरण आनंद ने
अपने आदेश में एक से आठ तक के अध्ययनरत बच्चों के लिए किताब पहुंचाने के
लिए 15.45 लाख रुपये बजट का प्रावधान किया था। यह भी निर्देश दिए गए थे कि
किताब पहुंचाने का काम शिक्षक एवं अन्य कर्मचारियों से न लिया जाय। जैम
पोर्टल से जिस ठीकेदार को यह काम सौंपा गया है, वह गोरखपुर का रहने वाला
है। अभी तक उसकी गाड़ी यहां पहुंची नहीं है। शिक्षकों का कहना है कि उनको
कई किलोमीटर तक किताबें उठाकर ले जानी पड़ रही हैं। अधिकारियों की मनमानी के
चलते शिक्षक पहले बीआरसी पर पूरे दिन किताबों को कक्षावार छांटते हैं। फिर
बंडल बनाते है और उसे वाहन पर लाद कर स्कूल पहुंचाते हैं। शिक्षक मूल काम
से इतर भी उन्हें इन कामों को करना पड़ता है। इन कार्यों को करने के लिए
दबाव बनाए जाते हैं।
यदि कोई खंड शिक्षा
अधिकारी अध्यापक या शिक्षा मित्र से किताबों का बंडल ले जाने के लिए कहता
है तो यह गलत है। बीआरसी का काम बच्चों की सूची के अनुसार के किताबों का
बंडल तैयार कराना है। ढुलाई के लिए ठेका दिया गया है। संबंधित ठीकेदार ही
स्कूलों तक किताब पहुंचाएंगे। यदि कहीं शिकायत मिलती है तो संबंधित के
खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
राजेंद्र सिंह, बीएसए, सिद्धार्थनगर
0 comments:
Post a Comment