नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर केंद्र और विभिन्न राज्यों की ओर से कानूनी पहलू स्पष्ट किए जाने की मांग पर मंगलवार को कहा कि यह कोर्ट नहीं बताएगा कि सरकार कैसे नीति लागू करे। एम.नागराज के फैसले में निर्देश जारी किए गए हैं, अब प्रत्येक राज्य को निर्णय लेना है कि वह उन्हें कैसे लागू करेगा।
कोर्ट
ने साफ किया कि वह एम.नागराज के फैसले को दोबारा नहीं खोलेगा। कोर्ट लंबित
मामलों को पहले तय किए जा चुके फैसलों के आधार पर निर्धारित करेगा। इसके
साथ ही कोर्ट ने राज्यों से कहा कि वह अपने यहां के विशिष्ट कानूनी मुद्दों
के बारे में दो सप्ताह में संक्षिप्त नोट दाखिल करें। कोर्ट दो सप्ताह बाद
मामले पर अंतिम सुनवाई करेगा। कोर्ट ने मामले को पांच अक्टूबर को फिर
सुनवाई पर लगाने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में एम.नागराज के
फैसले को दोबारा विचार के लिए सात न्यायाधीशों की पीठ को भेजे जाने की मांग
खारिज कर दी थी हालांकि कोर्ट ने 2006 में दिए गए एम.नागराज के फैसले में
एससी एसटी को आरक्षण देने से पहले पिछड़ेपन के आंकड़े जुटाने की शर्त खारिज
कर दी थी। कोर्ट ने कहा था कि एससी एसटी मामले में पिछड़ेपन के आंकड़े
जुटाने की जरूरत नहीं है। लेकिन पांच जजों की पीठ ने कहा था कि एससी-एसटी
के आरक्षण में क्रीमी लेयर की अवधारणा शामिल होनी चाहिए। यानी एससी-एसटी
आरक्षण में भी क्रीमी लेयर को बाहर किया जाना चाहिए। एससी-एसटी को
प्रोन्नति में आरक्षण के विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बहुत सी याचिकाएं
लंबित हैं जिनमें स्थिति स्पष्ट करने की मांग की गई है या फिर हाई कोर्ट
के आदेशों को चुनौती दी गई है। ये मामला जनरैल सिंह बनाम लक्ष्मीनारायण केस
के नाम से लगता है जिसके साथ बाकी मामले संलग्न हैं। जस्टिस एल नागेश्वर
राव की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने मंगलवार को एससी एसटी को
प्रोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर लंबित दर्जनों अर्जयिों पर सुनवाई के
दौरान उपरोक्त टिप्पणी की।
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