कोराना संक्रमण के दौर में होने जा रहे प्रदेश विधानसभा के चुनाव शिक्षा जगत के मुद्दे अभी तक चर्चा में जगह नहीं बना पाए हैं। चुनावी रैलियों व जनसभाओं पर रोक के कारण वर्चुअल माध्यम पर निर्भरता भी शिक्षा के मुद्दे पर ध्यानाकर्षण नहीं कर पा रही। यहां तक कि बहु प्रचारित नई शिक्षा नीति पर भी कोई मुद्दा नहीं बन पा रही है।
राजनीतिक
विश्लेषक मानते हैं कि चुनावी बिगुल बजने से पहले प्रदेश में आम आदमी
पार्टी की दस्तक के साथ एक बार प्रदेश की प्राथमिक शिक्षा मुद्दा बनती नजर
आई थी, लेकिन चुनावी सरगर्मी बढ़ने के बाद उस पर चर्चा भी नहीं हो पा रही
है। दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने दिल्ली और यूपी के सरकारी
स्कूलों की तुलनात्मक स्थिति पर बहस छेड़कर इसे चुनावी मुद्दा बनाने की
कोशिश की थी। कुछ दिनों तक भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच वार-पलटवार का
दौर भी चला, लेकिन अब मुद्दा चुनावी परिदृश्य से ओझल है। इसी तरह सत्तारूढ़
भाजपा ने नई शिक्षा नीति को ‘गेम चेंजर’ के तौर पर प्रचारित किया और यूपी
को उसे लागू करने वाले पहला राज्य बताकर खुद को सबसे आगे दिखाने की कोशिश
की, लेकिन अब चुनाव के समय इसकी भी कोई चर्चा नहीं हो रही है।
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