
सूबे के अशासकीय हों या फिर मान्यता प्राप्त माध्यमिक विद्यालय। वहां प्रबंध समिति के झगड़े आम बात है। शासन को इधर लगातार यह सूचनाएं मिल रही थी कि प्रबंध समिति में विवाद होने की दशा में जिला विद्यालय निरीक्षक खुद या फिर अपने कार्यालय के करीबियों को प्रबंध संचालक बनाकर वहां के हुक्मरान बन रहे हैं।
इस पर अंकुश लगाने के लिए शासन ने नियमों में किया है। दो सितंबर, 2008 को जारी शासनादेश को अतिक्रमित करते हुए नए नियम लागू किए गए हैं। इसके तहत जिन शैक्षिक संस्थाओं की अनुमोदित प्रशासन योजना में प्रबंध समिति कालातीत होने की दशा में निर्वाचन एवं कार्य संचालन के लिए प्रबंध संचालक नियुक्त किए जाने की व्यवस्था हो, उसे संशोधित करते हुए प्रबंध संचालक रखने की व्यवस्था समाप्त कर दी गई है। इसकी वजह यह है कि इन विद्यालयों में गड़बड़ी मिलने की दशा में माध्यमिक शिक्षा अधिनियम 1921 एवं वेतन वितरण अधिनियम 1971 में व्यवस्था दी गई है।
माध्यमिक शिक्षा के प्रमुख सचिव जितेंद्र कुमार ने यह भी निर्देश दिया है कि जिन शैक्षिक संस्थाओं में कोर्ट के निर्देश पर प्रबंध संचालक नियुक्त हों, वहां न्यायालय के आदेश के अनुसार कार्यवाही की जाए, लेकिन जिन कालेजों में प्रशासन योजना के तहत प्रबंध संचालक तैनात हो, वहां तीन माह के अंदर प्रबंध समिति का नियमानुसार गठन कराकर प्रभार हस्तांतरित किया जाएगा।
यह भी निर्देश है कि प्रबंध समिति के चुनाव के लिए संस्थाधिकारी यदि पर्यवेक्षक की मांग करता है तो जिला विद्यालय निरीक्षक अधिकतम सात दिन में पर्यवेक्षक नामित करेगा। वहीं, जिन कालेजों में प्रबंध समिति का कार्यकाल पूरा होना हो उसके तीन माह पहले ही डीआइओएस चुनाव कराने की व्यवस्था शुरू कर दें। इसके लिए डीआइओएस प्रबंध समिति के गठन की नियमित समीक्षा करेंगे और समितियों को चुनाव कराने के लिए नोटिस या फिर निर्देश जारी करेंगे।
प्रमुख सचिव ने यह भी निर्देश जारी किया है कि किसी भी संस्था में जिला विद्यालय निरीक्षक, वित्त एवं लेखाधिकारी या कार्यालय जिला विद्यालय निरीक्षक को प्रबंध संचालक नियुक्त नहीं किया जाएगा। यही नहीं, यदि प्रबंध समिति का कार्यकाल समाप्त हो जाने तक चुनाव नहीं कराए जाते तो जिला विद्यालय निरीक्षक की संस्तुति के आधार पर माध्यमिक शिक्षा अधिनियम की धारा 16(डी) के तहत कार्यवाही की जाएगी। jagran
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