उत्तर प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों में
सहायक शिक्षकों की भर्ती और शिक्षामित्रों के समायोजन के मामले में
सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। जहां एक ओर 172000 शिक्षा
मित्रों को कोर्ट से झटका लगा है वहीं 165000 सहायक शिक्षकों को कोर्ट से
राहत मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षामित्रों का सहायक शिक्षक के तौर पर
समायोजन रद करने के हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया है।
हालांकि
शिक्षामित्रों को जरूरी योग्यता हासिल कर दो भर्तियों में भाग लेने का
मौका दिया जाएगा इतना ही नहीं भर्ती मे उनके अनुभव को भी प्राथमिकता दी
जाएगी। दूसरी ओर कोर्ट ने टीईटी के बजाए एकेडेमिक मेरिट के आधार पर भर्ती
हुए सहायक शिक्षकों को बड़ी राहत दे दी है। कोर्ट ने यूपी बेसिक शिक्षा
विभाग के वकील राकेश मिश्रा की ये दलील स्वीकार कर ली है कि भर्ती की मेरिट
एकेडेमिक योग्यता ही होगी टीईटी क्वालीफाइंग योग्यता होगी। हालांकि कोर्ट
ने साफ किया है कि सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश पर टीईटी की मेरिट के आधार
पर नियुक्त हो चुके 66655 सहायक अध्यापकों की भर्ती को डिस्टर्ब नहीं किया
जाएगा। ये मामला 72825 सहायक शिक्षकों की भर्ती का था। कोर्ट ने कहा है कि
बाकी बचे पदों को राज्य सरकार अपने नियमों के मुताबिक नया विज्ञापन निकाल
कर भर सकती है।
एकेडेमिक योग्यता की
मेरिट के आधार पर भर्ती हुए करीब 99000 सहायक शिक्षकों को भी इसी आधार पर
राहत मिल गई है। कोर्ट ने उनकी नियुक्ति रद करने का हाईकोर्ट का एक दिसंबर
2016 का आदेश निरस्त कर दिया है और सरकार के एकेडेमिक मेरिट के नियम को सही
ठहराया है। ये फैसला न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल व न्यायमूर्ति यूयू
ललित की पीठ ने हाईकोर्ट के विभिन्न आदेशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं
का निपटारा करते हुए सुनाया है। शिक्षा मित्रों का समायोजन रदसुप्रीम कोर्ट
ने शिक्षामित्रों का सहायक शिक्षक के तौर पर समायोजन रद करने के इलाहाबाद
हाईकोर्ट के 12 सितंबर 2015 के फैसले को सही ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि
178000 शिक्षा मित्रों का कैरियर बच्चों को मिले मुफ्त और गुणवत्ता की
शिक्षा की बिनह पर नहीं हो सकता। कोर्ट ने हाईकोर्ट से सहमति जताते हुए कहा
कि कानून के मुताबिक नियुक्ति के लिए 23 अगस्त 2010 की अधिसूचना से
न्यूनतम योग्यता जरूरी है।
न्यूनतम
योग्यता के बगैर किसी नियुक्त की अनुमति नहीं दी जा सकती। ये सारी
नियुक्तियां उपरोक्त तिथि के बाद हुई हैं। नियमों में छूट सीमित समय के लिए
दी जा सकती है। शिक्षामित्र 23 अगस्त 2010 से पहले की श्रेणी में नहीं
आते, जिनकी नियुक्ति नियमित की जा सके। कोर्ट ने कहा कि शिक्षामित्रों की
नियुक्ति न सिर्फ संविदा पर थी बल्कि उनकी योग्यता भी शिक्षक के लिए
निधार्रित योग्यता नहीं थी। उनका वेतनमान भी शिक्षक का नहीं था। इसलिए
उन्हें शिक्षक के तौर पर नियमित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि
शिक्षामित्र निर्धारित योग्यता के मुताबिक कभी शिक्षक नहीं नियुक्त हुए।
उन्हें नियमों के विरुद्ध शिक्षक नहीं बनाया जा सकता। राज्य सरकार को
नियमों में छूट देने का हक नहीं है।कोर्ट
ने कहा कि गैप को भरने के लिए अयोग्य शिक्षकों से भले ही पढाया गया हो
लेकिन अंतत: योग्य टीचरों की भर्ती होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा है कि
शिक्षामित्रों को शिक्षक के तौर पर नियमित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा
कि मामले की विशिष्ट परिस्थितियों को देखते हुए उन्हें भर्ती में
प्राथमिकता दी जा सकती है। अगर शिक्षामित्र जरूरी योग्यता हासिल कर लेते
हैं तो लगातार दो बार के भर्ती विज्ञापनों में उन्हें मौका दिया जायेगा।
उन्हें आयु में छूट मिलेगी साथ ही उनके अनुभव को भी प्राथमिकता दी जाएगी।
कोर्ट ने कहा कि जबतक उन्हे ये मौका मिलता है तबतक राज्य सरकार चाहे तो
उन्हें समायोजन से पहले की शर्तो के आधार पर शिक्षामित्र के रूप में काम
करने दे सकती है।
फैसले पर प्रतिक्रिया
देते हुए उत्तर प्रदेश दूरस्थ बीटीसी शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल
कुमार यादव ने कहा कि वे फैसले का सम्मान करते हैं साथ ही राज्य सरकार से
शिक्षामित्रों को दो वर्ष की विभागीय टीईटी कराने की मांग करते हैं। सहायक
शिक्षकों को राहतसुप्रीम कोर्ट ने पंद्रहवें और सोलहवें संशोधनों को सही
ठहरा कर एकेडेमिक योग्यता के आधार पर भर्ती हुए सहायक शिक्षकों को बड़ी
राहत दे दी है। कोर्ट के फैसले से साफ हो गया है कि सहायक शिक्षक भर्ती में
एकेडेमिक मेरिट ही आधार होगी। टीईटी सिर्फ क्वालीफाइंग योग्यता होगी। ये
सारा मामला 12वें, पंद्रहवे और सोलहवें संशोधन को लेकर था। हाईकोर्ट ने
टीईटी को भर्ती की मेरिट का आधार माना था। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने ये तर्क
स्वीकार कर लिया कि टीईटी जरूरी योग्यता तो है लेकिन वो एकमात्र मेरिट का
जरूरी आधार नहीं है।
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