प्रयागराज : कोरोना महामारी के बीच शिक्षण संस्थाएं भी खूब
मनमानी कर रहे हैं। बच्चों से पूरी फीस ली जा रही है। सभी कक्षाएं ऑनलाइन
संचालित हो रही हैं, बावजूद इसके शिक्षकों अैर कर्मचारियों के वेतन से 40
से 60 फीसद तक की कटौती की जा रही है। कुछ जगहों पर शिक्षकों और
कर्मचारियों को एक साल से वेतन नहीं मिला है। ऐसे संस्थान भी हैं, जहां
छटनी कर दी गई है।
सुलेमसराय
निवासी डॉ. सोनाली घोष ने बताया कि वह क्षेत्र के ही एक स्कूल में हंिदूी
और संस्कृत पढ़ाती थीं। पिछले वर्ष के लॉकडाउन के बाद से ही उन्हें स्कूल
से हटा दिया गया। इसी तरह स्टेनली रोड निवासी डॉ. गीता भी एक विद्यालय में
जीव विज्ञान की शिक्षक थीं। उन्हें भी हटा दिया गया है। डायसिस ऑफ लखनऊ के
कर्मचारी यूनियन संघ अध्यक्ष सुनील कुमार वर्मा ने बताया कि संबद्ध शिक्षण
संस्थानों में विद्यार्थियों से बराबर शुल्क लिया जा रहा है।
कर्मचारियों
और शिक्षकों का भुगतान नहीं हो रहा। कुछ शिक्षक-कर्मचारी ऐसे भी हैं जो
कोरोना संक्रमित भी हुए, लेकिन उनके पास इलाज का खर्च नहीं था। सुनील बताते
हैं कि स्कूल प्रबंधन व डायसिस के पदाधिकारियों से कई बार समस्या के
समाधान के लिए कहा गया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। इस प्रकरण में
मुख्यमंत्री व डीएम को भी उन्होंने ट्वीट किया है।
शासन
की ओर से इस बार सिर्फ ट्यूशन फीस लेने का निर्देश है। तमाम स्कूलों ने
इसमें भी खेल शुरू कर दिया है। वह पूरा शुल्क ले रहे हैं और यह नहीं बता
रहे कि किस मद में कितना ले रहे। इस कदम से अभिभावकों को जो राहत मिलनी
चाहिए थी वह नहीं मिल पा रही है। यदि कोई सवाल खड़ा करता है तो यही कहा
जाता है कि शिक्षण शुल्क ही लिया जा रहा है। उच्च न्यायालय के अधिवक्ता
प्रशांत कुमार शुक्ल ने बताया कि 2017-2018 तक फीस रसीद में अन्य मदों से
ली जाने वाली फीस शामिल होती थी। 2018 -2019 से फीस बढ़ाते हुए अन्य मदों
से ली जाने वाली फीस को शिक्षण शुल्क में समायोजित कर दिया गया। उन्होंने
जिलाधिकारी और जिला विद्यालय निरीक्षक से मांग की है कि सत्र 2017 -2018 से
2021-2022 तक पूरी फीस का ब्यौरा सभी निजी स्कूल के प्रबंधकों से लिया
जाए। जिससे अभिभावकों को शासन की मंशा के अनुसार कुछ राहत मिल सके।
अभिभावक बोले- पिछले साल पूरी फीस दी, इस बार भी दे रहे
चौक
निवासी सुधा गौड ने बताया कि पिछले साल उन्होंने बच्चे की पूरी फीस जमा की
थी। इस बार भी तीन-तीन महीने की फीस जमा की। इसके अतिरिक्त कापी-किताब,
स्कूल ड्रेस व जूता मोजा भी खरीदना पड़ा। मीरापुर की आरती केसरवानी, काला
डांडा के चंद्र प्रकाश कौशल, कोठा पार्चा के दुर्गा प्रसाद गुप्त ने भी कहा
कि महामारी में काम-धंधा सब प्रभावित है, लेकिन स्कूलों की फीस बराबर जमा
कर रहे हैं। अन्य खर्चे भी उठाने पड़ रहे हैं।
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