इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में कहा कि विवाहिता पुत्री मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति पाने की हकदार नहीं है। कोर्ट ने विवाहिता पुत्री को आश्रित कोटे में नियुक्ति देने के एकल पीठ के आदेश को रद्द कर दिया है। यह निर्णय कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति एमएन भंडारी एवं न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने दिया है।
मामले
के तथ्यों के अनुसार माधवी मिश्रा ने विवाहिता पुत्री के तौर पर मृतक
आश्रित कोटे में नियुक्ति की मांग की। याची के पिता इंटर कॉलेज में तदर्थ
प्रधानाचार्य पद पर कार्यरत थे। सेवाकाल में उनकी मृत्यु हो गई थी। राज्य
सरकार की ओर से अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता सुभाष राठी का कहना था कि विधवा,
विधुर पुत्र, अविवाहित या विधवा पुत्री को आश्रित कोटे में नियुक्ति पाने
का हकदार माना गया है। 1974 की मृतक आश्रित सेवा नियमावली कॉलेज की
नियुक्ति पर लागू नहीं होती। एकल पीठ ने गलत ढंग से इसके आधार पर नियुक्ति
का आदेश दिया है। वैसे भी सामान्य श्रेणी का पद खाली नहीं है। ऐसे में जिला
विद्यालय निरीक्षक शाहजहांपुर ने नियुक्ति से इनकार कर गलती नहीं की है।
सुनवाई
के बाद कोर्ट ने कहा कि आश्रित की नियुक्ति का नियम जीविकोपार्जन करने
वाले की अचानक मौत से उत्पन्न आर्थिक संकट में मदद के लिए है। साथ ही
मान्यता प्राप्त एडेड कॉलेजों के आश्रित कोटे में नियुक्ति की अलग नियमावली
है इसलिए सरकारी सेवकों की 1994 की नियमावली इसमें लागू नहीं होगी। साथ ही
याची ने छिपाया कि उसकी मां को पारिवारिक पेंशन मिल रही है।
0 comments:
Post a Comment