राज्य सरकार को भले ही अभी हाईकोर्ट के आदेश की प्रति न मिली हो लेकिन वह
शिक्षामित्रों के लिए दूसरे विकल्पों पर मंथन में जुट गई है। हाईकोर्ट से
समायोजन रद्द होने के बाद भी सरकार शिक्षामित्रों की हरसंभव मदद करना चाहती
है। वह चाहती है कि यदि इन्हें स्थायी शिक्षक नहीं बनाया जा सकता है तो
शिक्षा सहायक या अन्य किसी नाम से शिक्षकों के बराबर वेतन व अन्य भत्ते दिए
जाएं।
सरकार इस बार कोई चूक नहीं चाहती,
इसलिए सभी पहलुओं पर गंभीरतापूर्वक विचार-विमर्श किया जा रहा है। मंत्री और
अधिकारी शिक्षामित्रों के संगठनों से बातचीत कर उनसे दूसरे फॉर्मूलों पर
सुझाव मांग रहे हैं। कुछ लोगों ने त्रिपुरा मॉडल का सुझाव दिया है। वहां
शिक्षामित्रों की तर्ज पर सर्व शिक्षा अभियान में भर्तियां की गई थी। इनको
कॉट्रेक्ट शिक्षक का नाम देते हुए शिक्षकों के बराबर वेतन और अन्य सुविधाएं
दी जा रही हैं। टीईटी कराने या इससे छूट देने का अधिकार भले ही राष्ट्रीय
अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) के पास है लेकिन शिक्षकों की सेवा शर्तें
तय करने का अधिकार तो राज्य सरकार के पास है। इसलिए सरकार अपने हिसाब से
वेतनमान व भत्ते तय करते हुए शिक्षामित्रों को लाभ पहुंचा सकती है।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी बुधवार को इसका संकेत दिया। उन्होंने एक
कार्यक्रम में कहा कि राज्य सरकार शिक्षामित्रों के साथ है। उनके लिए दूसरे
विकल्पों पर भी विचार किया जा सकता है। बेसिक शिक्षा मंत्री रामगोविंद
चौधरी ने इस दिशा में काम शुरू भी कर दिया है।
News Source-Amar Ujala
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