नई शिक्षा नीति तैयार करने के लिए अंतरिक्ष वैज्ञानिक कस्तूरीरंगन के
नेतृत्व में एक नई समिति के गठन की घोषणा से यह स्पष्ट है कि पूर्व कैबिनेट
सचिव टीएसआर सुब्रमण्यम की अध्यक्षता वाली समिति ने इस नीति का जो मसौदा
तैयार किया था वह एक तरह से ठंडे बस्ते में गया। हो सकता है कि भविष्य की
जरूरतों के हिसाब से यह मसौदा उपयुक्त न रहा हो, लेकिन अच्छा होता कि नई
समिति का गठन समय रहते किया जाता। यह ठीक नहीं कि मोदी सरकार के कार्यकाल
के तीन साल बीत गए और नई शिक्षा नीति अभी भी दूर है। कम से कम अब तो यह
सुनिश्चित किया ही जाना चाहिए कि कस्तूरीरंगन समिति नई शिक्षा नीति तैयार
करने में तत्परता का परिचय दे। इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि वह देश की
जरूरतों को पूरा करने में सहायक बने। यह इसलिए कठिन काम है, क्योंकि मौजूदा
शिक्षा नीति अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतर पाई है। यह एक तथ्य है कि
उद्योग-व्यापार जगत लगातार यह शिकायत कर रहा है कि स्कूलों और कालेजों से
ऐसे युवा नहीं निकल पा रहे जो उसकी आवश्यकता पूरी कर सकें। देश में जैसे
नैतिक आचार-व्यवहार का परिचय दिया जाना चाहिए उसके अभाव के लिए भी किसी न
किसी स्तर पर शिक्षा व्यवस्था ही दोषी है। आज की शिक्षा व्यवस्था की एक
बड़ी खामी यह भी है कि वह केवल अच्छे नंबरों से पास करने की होड़ बढ़ा रही
है। हालांकि एक अर्से पहले इसकी अनूभूति हो गई थी कि किताबी ज्ञान का एक
सीमा तक ही महत्व है, लेकिन नए तौर-तरीके अपनाने को प्राथमिकता नहीं प्रदान
की गई। यह सही है कि स्कूलों-कालेजों से निकले तमाम युवाओं ने देश-दुनिया
में भारत का नाम ऊंचा किया है, लेकिन यह भी एक यथार्थ है कि ऐसा अवसर
मुट्ठी भर छात्रों को ही मिल सका है। इसके लिए मौजूदा शिक्षा व्यवस्था ही
उत्तरदायी है।
यह समझना कठिन है कि जब सभी इससे परिचित हैं कि शिक्षा राष्ट्र निर्माण का सबसे प्रभावी माध्यम है तब शिक्षा में असमानता को दूर करने की कोई ठोस पहल क्यों नहीं की गई? तमाम शिक्षाविद् न जाने कब से यह कह रहे हैं कि समान पाठ्यक्रम असमानता को मिटाने में एक बड़ी हद तक सहायक हो सकता है, लेकिन कोई नहीं जानता कि इस दिशा में आगे क्यों नहीं बढ़ा गया? अब तो यह काम अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए। समान पाठ्यक्रम के अलावा इस पर भी अवश्य ध्यान दिया जाना चाहिए कि शिक्षा केवल डिग्री-डिप्लोमा पाने का जरिया और नौकरी पाने का मकसद भर न रहे। यह वक्त की मांग है कि शिक्षा के जरिये भावी पीढ़ी को नैतिक मूल्यों के साथ हुनर और पेशेवर रुख से भी लैस किया जाए ताकि वे आत्मनिर्भर होना सीख सकें और राष्ट्र की संपदा के रूप में निखर सकें। यह अच्छी बात है कि कस्तूरीरंगन के साथ अपने-अपने क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाले प्रतिष्ठित लोगों के साथ कुछ ऐसे भी लोग है जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में कुछ कर दिखाया है, लेकिन इसमें दोराय नहीं कि उन सबके समक्ष एक बड़ी चुनौती है। उन्हें नई शिक्षा नीति के साथ ही नए भारत के निर्माण का आधार भी तैयार करना है।
यह समझना कठिन है कि जब सभी इससे परिचित हैं कि शिक्षा राष्ट्र निर्माण का सबसे प्रभावी माध्यम है तब शिक्षा में असमानता को दूर करने की कोई ठोस पहल क्यों नहीं की गई? तमाम शिक्षाविद् न जाने कब से यह कह रहे हैं कि समान पाठ्यक्रम असमानता को मिटाने में एक बड़ी हद तक सहायक हो सकता है, लेकिन कोई नहीं जानता कि इस दिशा में आगे क्यों नहीं बढ़ा गया? अब तो यह काम अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए। समान पाठ्यक्रम के अलावा इस पर भी अवश्य ध्यान दिया जाना चाहिए कि शिक्षा केवल डिग्री-डिप्लोमा पाने का जरिया और नौकरी पाने का मकसद भर न रहे। यह वक्त की मांग है कि शिक्षा के जरिये भावी पीढ़ी को नैतिक मूल्यों के साथ हुनर और पेशेवर रुख से भी लैस किया जाए ताकि वे आत्मनिर्भर होना सीख सकें और राष्ट्र की संपदा के रूप में निखर सकें। यह अच्छी बात है कि कस्तूरीरंगन के साथ अपने-अपने क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाले प्रतिष्ठित लोगों के साथ कुछ ऐसे भी लोग है जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में कुछ कर दिखाया है, लेकिन इसमें दोराय नहीं कि उन सबके समक्ष एक बड़ी चुनौती है। उन्हें नई शिक्षा नीति के साथ ही नए भारत के निर्माण का आधार भी तैयार करना है।
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